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Delhi : भगत सिंह के शैक्षणिक पक्ष से भी प्रेरणा लें विद्यार्थी प्रो. योगेश सिंह, डीयू कुलपति ने वॉइस रीगल लॉज के तहखाने में भगत सिंह को किए श्रद्धा सुमन अरर्पित : अतुल सचदेवा

naveen sahu
28 Sep 2022 11:23 AM GMT
Delhi : भगत सिंह के शैक्षणिक पक्ष से भी प्रेरणा लें विद्यार्थी प्रो. योगेश सिंह, डीयू कुलपति ने वॉइस रीगल लॉज के तहखाने में भगत सिंह को किए श्रद्धा सुमन अरर्पित : अतुल सचदेवा
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Delhi : दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. योगेश सिंह ने कहा कि भगत सिंह के क्रांतिकारी पक्ष पर बहुत लेखन और चर्चा हुई, लेकिन उनके शिक्षा के पक्ष को बहुत ही कम उकेरा गया है। विद्यार्थियों के लिए उनके शैक्षणिक पक्ष पर भी ध्यान देना व उससे प्रेरणा लेना बहुत जरूरी है। कुलपति बुधवार को …

Delhi : दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. योगेश सिंह ने कहा कि भगत सिंह के क्रांतिकारी पक्ष पर बहुत लेखन और चर्चा हुई, लेकिन उनके शिक्षा के पक्ष को बहुत ही कम उकेरा गया है। विद्यार्थियों के लिए उनके शैक्षणिक पक्ष पर भी ध्यान देना व उससे प्रेरणा लेना बहुत जरूरी है। कुलपति बुधवार को शहीद भगत सिंह के जन्म दिवस के अवसर पर, विश्वविद्यालय के वॉइस रीगल लॉज के तहखाने में बनी भगत सिंह की कोठरी में, शहीद भगत सिंह को श्रद्धा सुमन अर्पित करने के बाद चर्चा के दौरान बोल रहे थे।

कुलपति ने कहा कि भगत सिंह हिन्दी, उर्दू, अंग्रेजी, पंजाबी, बंगला और आयरिश भाषाओं के अच्छे ज्ञाता होने के साथ-साथ अच्छे वक्ता, अच्छे पाठक और अच्छे लेखक भी थे। विभिन्न अखबारों में लेखन के साथ ही उन्होने ‘अकाली’ और ‘कीर्ति’ नामक दो अखबारों का सम्पादन भी किया। जेल में रहते हुए भी उनका अध्ययन लगातार जारी रहा। इस दौरान उनके द्वारा लिखे गए लेख और परिवार को लिखे गए पत्र उनकी लेखन प्रतिभा व विचारों के दर्पण हैं।

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उन्होने बताया कि भगत सिंह की प्राथमिक शिक्षा गांव के प्राइमरी स्कूल में हुई। प्राथमिक शिक्षा पूर्ण करने के पश्चात 1916-17 में उन्होने लाहौर के डी. ए. वी स्कूल में दाखिला लिया, लेकिन 1920 के महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन से प्रभावित होकर 1921 में भगत सिंह ने स्कूल छोड़ दिया। हालांकि उन्होने अपनी आगामी पढ़ाई दुबारा से शुरू करने के लिए लाहौर के नेशनल कॉलेज में प्रवेश लिया। 1923 में उन्होने एफ.ए. परीक्षा पास की।

उसके पश्चात वह इसी कालेज से बीए कर रहे थे कि उनके परिवार द्वारा शादी का दबाव बनाए जाने पर वह लाहौर से कानपुर भाग गए। सन 1924 में उन्होंने कानपुर में दैनिक समाचार पत्र प्रताप के संचालक गणेश शंकर विद्यार्थी से भेंट की। इस भेंट के माध्यम से वे वटुकेश्वर दत्त और चंद्रशेखर आज़ाद के सम्पर्क में आए। वटुकेश्वर दत्त से उन्होंने बंगला सीखी।

प्रो. योगेश सिंह ने कहा कि जेल में रहने के दौरान भी फांसी के समय तक भगत सिंह द्वारा पुस्तकों के अध्ययन और लेखन में को महत्व देना उनके शिक्षा के प्रति लगाव को दर्शाता है। आज के नौजवानों को क्रांतिकारी पक्ष के साथ-साथ शहीद भगत सिंह के शैक्षणिक पक्ष को भी समझना चाहिए और उससे प्रेरणा लेनी चाहिए। उन्होने कहा कि शिक्षा और ज्ञान के बिना राष्ट्र विकास संभाव नहीं है। भगत सिंह जैसे देशभगत अपने बलिदानों से हमें आजादी तो दिलवा गए, लेकिन यह आजादी तभी सार्थक होगी जब हम उनके सपनों का भारत बनाएँगे।

कुलपति ने कहा कि हमारे लिए ये गर्व और सम्मान की बात है कि दिल्ली विश्वविद्यालय परिसर में भगत सिंह जैसी महान आत्मा के चरण पड़े। उन्होने बताया कि 8 अप्रैल 1929 को भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने सेंट्रल असेंबली में बम फेंका था। इस मामले में उन्हें 12 जून 1929 को दोषी करार दिया गया था। इसके साथ ही भगत सिंह को पंजाब की मियांवाली जेल भेजने के आदेश दे दिए गए। उन्हें पंजाब भेजने से पहले एक दिन के लिए वॉइस रीगल लॉज के तहखाने में बनी इस कोठरी में रखा गया था।

कुलपति ने कहा कि यह कोठरी किसी तीर्थ स्थल से कम नहीं है। उन्होने बताया कि विश्वविद्यालय ने इस कोठरी को शहीद भगत सिंह की स्मृति में संरक्षित किया है। इस कक्ष में भगत सिंह से संबंधित एक पुस्तकालय भी स्थापित किया गया है जिसमें शहीद भगत सिंह के लेखन और उन पर हुए विद्वानों के अन्य कार्य प्रदर्शित किए जा रहे हैं। इस अवसर पर उनके साथ डीन ऑफ कलेजेज प्रो. बलराम पानी, रजिस्ट्रार डॉ विकास गुप्ता व पीआरओ अनूप लाठर आदि उपस्थित थे।

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