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RELIGIOUS

Shiva Purana : क्या आप जानते है भगवान शिव के मस्तक पर क्यों विराजते हैं चंद्रमा? जाने इसके पीछे की रोचक कहानी...

rohit banchhor
27 Dec 2023 4:32 PM GMT
Shiva Purana : क्या आप जानते है भगवान शिव के मस्तक पर क्यों विराजते हैं चंद्रमा? जाने इसके पीछे की रोचक कहानी...
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Shiva Purana : क्या आप जानते है भगवान शिव के मस्तक पर क्यों विराजते हैं चंद्रमा? जाने इसके पीछे की रोचक कहानी...


Shiva Purana : देवों के देव महादेव अपने भक्तों की भक्ति से बहुत जल्दी खुश हो जाते हैं। भोलेनाथ की कृपा से व्यक्ति के सभी कष्ट जल्दी दूर हो जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव ऐसे भगवान हैं जिन्हें आसानी से प्रसन्न किया जा सकता है। महादेव का नाम सुनते ही सभी के मस्तिष्क में एक अलग सा ही चित्र बनने लगता है। गले में सांपों की माला, हाथ में त्रिशूल और उनके लंबे केश जैसा चित्र सामने आता है। यही नहीं भगवान शिव शंकर के मस्तक पर चंद्रमा भी विराजमान है। उनके जिस भी रूप को देखें, उनके मस्तक पर चंद्रमा नजर आते हैं। आखिर ऐसा क्‍यों है? तो आइए जानते है।

बता दें कि भगवान शिव के शीश पर चंद्र धारण करने को लेकर कई पौराणिक कथाएं हैं। शिव पुराण के अनुसार, समुद्र मंथन के समय जब विष निकला तो सृष्टि की रक्षा हो इसका पान स्वयं शिव ने किया। यह विष उनके कंठ में जमा हो गया थे जिसकी वजह से वो नीलकंठ कहलाए। कथा के अनुसार विषपान के प्रभाव से शंकर जी का शरीर अत्यधिक गर्म होने लगा था। तब चंद्र सहित अन्य देवताओं ने प्रार्थना की कि वह अपने शीश पर चंद्र को धारण करें ताकि उनके शरीर में शीतलता बनी रहे। श्वेत चंद्रमा को बहुत शीतल माना जाता है जो पूरी सृष्टि को शीतलता प्रदान करते हैं. देवताओं के आग्रह पर शिवजी ने चंद्रमा को अपने मस्तक पर धारण कर लिया। एक अन्‍य कथा के अनुसार, चंद्रमा की पत्‍नी 27 नक्षत्र कन्याएं हैं। इनमें रोहिणी उनके सबसे समीप थीं। इससे दुखी चंद्रमा की बाकी पत्नियों ने अपने पिता प्रजापति दक्ष से इसकी शिकायत कर दी। तब दक्ष ने चंद्रमा को क्षय रोग से ग्रस्त होने का श्राप दिया। इसकी वजह से चंद्रमा की कलाएं क्षीण होती गईं। चंद्रमा को बचाने के लिए नारदजी ने उन्हें भगवान शिव की आराधना करने को कहां चंद्रमा ने अपनी भक्ति से शिवजी को प्रसन्‍न जल्द प्रसन्न कर लिया। शिव की कृपा से चंद्रमा पूर्णमासी पर अपने पूर्ण रूप में प्रकट हुए और उन्हें अपने सभी कष्टों से मुक्ति मिली। तब चंद्रमा के अनुरोध करने पर शिवजी ने उन्‍हें अपने शीश पर धारण किया।

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