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Kedarnath Disaster : केदारनाथ त्रासदी के 10 साल, वो ख़ौफ़नाक रात जब चारों तरफ़ छा गई थी तबाही...
केदारनाथ का प्रलयकारी नजारा शायद ही भुलाया जा सके। बादलों का फटना और बिनाशकारी बाढ़। ये दृश्य जिसने देखे, तस्वीरें उसकी आंखों में समा गईं। जिसने सुना, उनकी आंखें नम हो जाती हैं। लेकिन अब काफी कुछ बदल गया है. सब ने मिल जुलकर उस त्रासदी का सामना किया. आज उसके 10 साल बीत गए …
केदारनाथ का प्रलयकारी नजारा शायद ही भुलाया जा सके। बादलों का फटना और बिनाशकारी बाढ़। ये दृश्य जिसने देखे, तस्वीरें उसकी आंखों में समा गईं। जिसने सुना, उनकी आंखें नम हो जाती हैं। लेकिन अब काफी कुछ बदल गया है. सब ने मिल जुलकर उस त्रासदी का सामना किया. आज उसके 10 साल बीत गए हैं. लेकिन जब भी 16-17 जून की तारीख सामने आती है तो वो सैलाब आंखों के सामने उमड़ने लगता है. जोखिम भरों रास्तों से चलते हुए लोग अपने परिवार के साथ बाबा केदार के दर्शन करने के लिए गए थे. लेकिन किसी का पूरा परिवार खत्म हो गया तो कोई अकेला ही वापस लौटा. 2013 में अचानक बादल फटे और कई गांव नक्शे से ही मिट गए. ऐसा लग रहा था कि जैसे भगवान शिव की तीसरी नेत्र खुली हो और सब कुछ भस्म होता जा रहा हो.
इसको लेकर अलग-अलग लोगों ने कई कहानियां सुनाई. केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे भी उन परिवारों में थे जिन्होंने अपनों को खोया था. वो भी केदारनाथ यात्रा को याद करते हुए सिहर उठते हैं. खामोशी के साथ उनकी आंखें डबडबाने लगती हैं. तेज आवाज वाला गला भर्राने लगता है. घटना के 10 साल बीतने के बाद भी उनके वो जख्म भरे नहीं है. वो कभी भरेंगे भी नहीं. सोचकर रूह कांप जाती है. आप सपरिवार बाबा के दर्शन करने गए हों. वहां पर पानी का सैलाब हर तरफ से आगे बढ़ रहा हो. लोग कागज के माफिक बहते जा रहे थे. आप अपनों को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हों. तभी अचानक आपके परिवार के कुछ लोग पानी की तेज धार में बह जाएं. इन अनहोनी के चाहे जितने साल बीत जाएं मगर वो एक टीस, एक कसक सीने में घुसी हुई है.
सिहर जाते हैं आज भी वो दौर याद कर के….
पानी का वो रौद्र रूप. लिखते वक्त भी रोंगटे खड़े हो रहे हैं. पहले तो बादल फटे उसके बाद भयंकर बारिश, फिर भूस्खलन ने सब कुछ तबाह कर दिया. जो भी उन लहरों के सामने आया वो मिटता चला गया. चाहे वो पुल हो, पत्थर हो, सड़को हो, इमारतें हों या फिर पहाड़-पेड़ कुछ भी… सब बहता जा रहा था. वो दृश्य जिन लोगों के सामने आया था, उनमें से कुछ लोग जिंदा हैं. वो सदमें में चले गए थे. वो अपने दिमाग से उस खौफनाक रात को भूल नहीं पा रहे थे. हजारों तीर्थयात्रियों की मौत हो गई. कई लापता हैं. 10 साल के बाद भी उनको इंतजार है शायद मेरे वो अपने जिंदा हों. सुना है लोग 50 साल भी मिलते हैं. हमें भी उम्मीद है कि शायद हमको भी वो मिल जाएं. उनकी लाश नहीं मिली.
क्या कुछ बदला है केदार धाम में?
केदारनाथ धाम 12000 फीट की (लगभग 3600 मीटर) पर स्थित है. ये गढ़वाल रीजन में आता है. यहां पर भयंकर सर्द मौसम रहता है. जून के मौके पर भी पारा -3 डिग्री सेल्सियस पर आ जाता है. यहां के लोगों को ठंड की आदत हो जाती है. मतलब यहां के पुजारी भी बर्फ पर नंगे पांव चलते हैं. कई लोग बर्फ के ऊपर घंटों बैठकर जप करते रहते हैं. लाइट यहां पर बहुत कटती है. लेकिन फिर भी रूम हीटर से ही काम चलता है. यहां पूरे दिन श्रद्धालुओं का आना-जाना रहता है. पुराना वाला मार्ग विनाशकारी बाढ़ में पूरी तरह से नष्ट हो गया था. नया मार्ग पहले की तुलना में और कठिन हो गया है. यहां पर आपको ठहरने के लिए भी काफी मशक्कत करना पड़ता है.
बहुत कुछ हुआ है, कुछ बाकी है
एक कमरे की कीमत 5000 से 8000 तक होती है. लेकिन अधिकांश तीर्थयात्री मंदाकिनी नदी के किनारे बने तंबुओं में रात गुजारते हैं. ये बेहद खतरनाक हैं. यहां का हाड़ कंपा देने वाला पानी 2013 में तबाही का बड़ा कारण था. पूरा शहर तंबुओं से पटा पड़ा है. इसके अलावा अवैध रूप से बहुत सारे रुकने के लिए कमरे बनाए गए हैं. तीर्थयात्री 500 से 1000 रुपये खर्च कर उसमें रुकते हैं. बाढ़ के समय सबसे ज्यादा मौतों का कारण यही सब बना था. फिलहाल सब बदल गया है. बहुत कुछ सुधरा है और बहुत कुछ बदलना बाकी है. प्रशासन और सरकार लोगों की सुविधा और सुरक्षा की और ज्यादा व्यवस्था कर सकते हैं.