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Kabir Ke Dohe : सुबह-सुबह समय निकालकर जरूर सुने कबीर के ये दोहे, मन को मिलेगी शांति, दिनभर काम में लगा रहेगा मन 

naveen sahu
7 Oct 2022 2:47 AM GMT
Kabir Ke Dohe : सुबह-सुबह समय निकालकर जरूर सुने कबीर के ये दोहे, मन को मिलेगी शांति, दिनभर काम में लगा रहेगा मन 
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रायपुर। भागदौड़ से भरी इस दुनिया में हर कोई अपने काम और दिनचर्या को लेकर परेशान रहता हैं और अपना मन स्थिर नहीं रख पाते। और मानसिक तनाव से झूझने लगते हैं। ऐसे में लोगों को मानसिक शांति और आराम की जरुरत होती हैं। इसके लिए आपको समय निकाल कर कबीर के दोहे (Kabir Ke …

रायपुर। भागदौड़ से भरी इस दुनिया में हर कोई अपने काम और दिनचर्या को लेकर परेशान रहता हैं और अपना मन स्थिर नहीं रख पाते। और मानसिक तनाव से झूझने लगते हैं। ऐसे में लोगों को मानसिक शांति और आराम की जरुरत होती हैं। इसके लिए आपको समय निकाल कर कबीर के दोहे (Kabir Ke Dohe) सुनना चाहिए।

  1. बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर
    पंछी को छाया नहीं फल लागे अति दूर।

अर्थ– खजूर के पेड़ के समान बड़ा होने का क्या लाभ, जो ना ठीक से किसी को छाँव दे पाता है। और न ही उसके फल सुलभ होते हैं।

2. गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागूं पांय

बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो बताय।

अर्थ– गुरु और गोविंद यानी भगवान दोनों एक साथ खड़े हैं। पहले किसके चरण-स्पर्श करें। कबीरदास जी कहते हैं, पहले गुरु को प्रणाम करूंगा, क्योंकि उन्होंने ही गोविंद तक पहुंचने का मार्ग बताया है।

3. पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।

अर्थ– बड़ी-बड़ी पुस्तकें पढ़ कर संसार में कितने ही लोग मृत्यु के द्वार पहुंच गए, लेकिन सभी विद्वान न हो सके। कबीर मानते हैं कि यदि कोई प्रेम या प्यार के केवल ढाई अक्षर ही अच्छी तरह पढ़ ले, अर्थात प्यार का वास्तविक रूप पहचान ले तो वही सच्चा ज्ञानी होगा।

4. माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर।
आशा तृष्णा ना मरी, कह गए दास कबीर॥

अर्थ– कबीर दास जी कहते हैं कि शरीर, मन, माया सब नष्ट हो जाता है परन्तु मन में उठने वाली आषा और तृष्णा कभी नष्ट नहीं होती। इसलिए संसार की मोह तृष्णा आदि में नहीं फंसना चाहिए।

5. जब मैं था तब हरी नहीं, अब हरी है मैं नाही
सब अँधियारा मिट गया, दीपक देखा माही

अर्थ– जब मैं अपने अहंकार में डूबा था, तब प्रभु को न देख पाता था। लेकिन जब गुरु ने ज्ञान का दीपक मेरे भीतर प्रकाशित किया तब अज्ञान का सब अंधकार मिट गया। ज्ञान की ज्योति से अहंकार जाता रहा और ज्ञान के आलोक में प्रभु को पाया।

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6. जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान,
मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।

अर्थ– सज्जन की जाति न पूछ कर उसके ज्ञान को समझना चाहिए। तलवार का मूल्य होता है न कि उसकी मयान का उसे ढकने वाले खोल का।

7. माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर,
कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर।

अर्थ– कोई व्यक्ति लंबे समय तक हाथ में लेकर मोती की माला तो घुमाता है, पर उसके मन का भाव नहीं बदलता, उसके मन की हलचल शांत नहीं होती। कबीर की ऐसे व्यक्ति को सलाह है कि हाथ की इस माला को फेरना छोड़ कर मन के मोतियों को बदलो या फेरो।

8. तन को जोगी सब करें, मन को बिरला कोई
सब सिद्धि सहजे पाइए, जे मन जोगी होइ।

अर्थ– शरीर में भगवे वस्त्र धारण करना सरल है, पर मन को योगी बनाना बिरले ही व्यक्तियों का काम है। यदि मन योगी हो जाए तो सारी सिद्धियां सहज ही प्राप्त हो जाती हैं।

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