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Hareli : छत्तीसगढ़ की ‘हरेली’, बूझो एक पहेली... CM बघेल ने पूछा जनता से एक पहेली, क्या आपको पता है इसका सही जवाब...
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रायपुर, Hareli : आज पुरे छत्तीसगढ़ में जोरो-शोरों के साथ छत्तीसगढ़ का पहला त्यौहार हरेली मनाया जा रहा है, इसी बीच छत्तीसगढ़ के मुखिया भूपेश बघेल में जनता से एक पहेली पूछते हुए अपने ट्वीटर अकाउंट में एक ट्वीट किया और पूछा कि- क्या आप जानते हैं, हरेली में गेड़ी चढ़ने के पीछे क्या …
रायपुर, Hareli : आज पुरे छत्तीसगढ़ में जोरो-शोरों के साथ छत्तीसगढ़ का पहला त्यौहार हरेली मनाया जा रहा है, इसी बीच छत्तीसगढ़ के मुखिया भूपेश बघेल में जनता से एक पहेली पूछते हुए अपने ट्वीटर अकाउंट में एक ट्वीट किया और पूछा कि- क्या आप जानते हैं, हरेली में गेड़ी चढ़ने के पीछे क्या कारण है? तो आइयें हम आपको बताते है कि आखिर हरेली में गेड़ी चढ़ने के पीछे का क्या कारण होता है-
छत्तीसगढ़ की ‘हरेली’, बूझो एक पहेली 🤔
क्या आप जानते हैं, हरेली में गेड़ी चढ़ने के पीछे क्या कारण है?
अपने उत्तर कॉमेंट में लिखिए👇#MorHareli #BhupeshBaghel pic.twitter.com/xGFPt35WEI
— CMO Chhattisgarh (@ChhattisgarhCMO) July 27, 2022
हरेली में इसलिए चढ़ते है गेड़ी-
हरेली त्यौहार के दिन गांव के प्रत्येक घरों में गेड़ी का निर्माण किया जाता है, मुख्य रूप से यह पुरुषों का खेल है घर में जितने युवा एवं बच्चे होते हैं उतनी ही गेड़ी बनाई जाती है। गेड़ी दौड़ का प्रारंभ हरेली से होकर भादो में तीजा पोला के समय जिस दिन बासी खाने का कार्यक्रम होता है उस दिन तक होता है। बच्चे तालाब जाते हैं स्नान करते समय गेड़ी को तालाब में छोड़ आते हैं, फिर वर्षभर गेड़ी पर नहीं चढ़ते हरेली की प्रतीक्षा करते हैं। गेड़ी के पीछे एक महत्वपूर्ण पक्ष है जिसका प्रचलन वर्षा ऋतु में होता है। वर्षा के कारण गांव के अनेक जगह कीचड़ भर जाती है, इस समय गाड़ी पर बच्चे चढ़कर एक स्थान से दूसरे स्थान पर आते जाते हैं उसमें कीचड़ लग जाने का भय नहीं होता। बच्चे गेड़ी के सहारे कहीं से भी आ जा सकते हैं। गेड़ी का संबंध कीचड़ से भी है। कीचड़ में चलने पर किशोरों और युवाओं को गेड़ी का विशेष आनंद आता है। रास्ते में जितना अधिक कीचड़ होगा गेड़ी का उतना ही अधिक आनंद आता है।
वर्तमान में गांव में काफी सुधार हुआ है गली और रास्तों पर काम हुआ है। अब ना कीचड़ होती है ना गलियों में दलदल। फिर भी गेड़ी छत्तीसगढ़ में अपना महत्व आज भी रखती है। गेड़ी में बच्चे जब एक साथ चलते हैं तो उनमें आगे को जाने की इच्छा जागृत होती है और यही स्पर्धा बन जाती है। बच्चों की ऊंचाई के अनुसार दो बांस में बराबर दूरी पर कील लगाते हैं और बांस के टुकड़े को बीच में फाड़कर दो भाग कर लेते हैं, फिर एक सिरे को रस्सी से बांधकर पुनः जोड़ देते हैं इसे पउवा कहा जाता है। पउवा के खुले हुए भाग को बांस में कील के ऊपर फंसाते हैं पउवा के ठीक नीचे बांस से सटाकर 4-5 इंच लंबी लकड़ी को रस्सी से इस प्रकार बांधते है जिससे वह नीचे ना जा सके लकड़ी को घोड़ी के नाम से भी जाना जाता है। गेड़ी में चलते समय जोरदार ध्वनि निकालने के लिए पैर पर दबाव डालते हैं जिसे मच कर चलना कहा जाता है।