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CG : लगभग सौ वर्षो बाद पुनः दो भागो में विभाजित हुआ कोरिया - पाण्डेय
मनेन्द्रगढ़, एस के मिनोचा : CG कोरिया रियासत में 1600 ई. तक बालन्दो का शासन था। 1750 के मैनुपरी के चौहान वंश के दलथम्बन शाही व धारामल शाही कोरिया पहुॅचे। कोरिया में गोडो के बाद चौहान वंश का राज्य हुआ। कुछ समय उपरांत ईस्ट इंडिया कम्पनी के हाथो नागपुर के मोंडेजी भोसले के परास्त …
मनेन्द्रगढ़, एस के मिनोचा : CG कोरिया रियासत में 1600 ई. तक बालन्दो का शासन था। 1750 के मैनुपरी के चौहान वंश के दलथम्बन शाही व धारामल शाही कोरिया पहुॅचे। कोरिया में गोडो के बाद चौहान वंश का राज्य हुआ। कुछ समय उपरांत ईस्ट इंडिया कम्पनी के हाथो नागपुर के मोंडेजी भोसले के परास्त हो जाने के बाद सभंवतः छत्तीसगढ़ के राज्य ईस्ट इंडिया कंम्पनी के अधीन आ गये।
इसी के साथ 1818 में कोरिया रियासत भी आ गया। 24 दिसम्बर 1819 में राजा गरीब सिंह के स्वीकृत करारनामा के अनुसार कोरिया राज्य 400 रूपये वार्षिक अंग्रेजो को देगा तथा चांगमखार कोरिया की सांमती अधीनता होने के कारण 386 रूपये कोरिया राज्य के माध्यम से कंम्पनी को देगा।
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इतिहासकार डॉ विनोद कुमार पाण्डेय बताते है की सन् 1848 में एक अन्य अनुबंध के अनुसार चांगबखार रियासत देय राशि सीधे ईस्ट इण्डिया कंम्पनी को देने लगा तथा कोरिया रियासत से अलग होकर चांगबखार स्वतंत्र अस्तित्व में आ गया और यहॉ के राजा को ‘‘भैया’’ की उपाधि से सम्मानित किया गया।
इतिहास बदलता है कहावत के अनुसार 25 मई 1998 को नवीन कोरिया जिले का गठन किया गया जिसका मुख्यालय बैकुण्ठपुर रखा गया नये जिले का क्षेत्रफल 5977.70 वर्ग किमी है। छत्तीसगढ़ शासन के अनुसार नवीन जिला मनेन्द्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर का सृजन किया जा रहा है। अब कोरिया लगभग सौ वर्षो बाद पुनः दो भागो मे बॅट गया और नवीन जिले का निर्माण किया गया व मुख्यालय मनेन्द्रगढ़ रखा गया।
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मनेन्द्रगढ़ का मूल नाम कारीमाटी थी क्योंकि इसके आस-पास भूमि पर कोयला का भण्डार था तथा यहॉ की भू-भाग की मिट्टी काली थी सन् 1927 में कारीमाटी में भीषण आग लग गई थी जिससे यह सम्पूर्ण क्षेत्र जलकर राख हो गया 1930 में रेल्वे लाइन यहॉ पर आया तब राजा साहब ने रेल्वे स्टेशन के निकट नगर बसाने के निर्णय लिया तथा इस स्थान का नाम अपने तृतीय पुत्र मनेन्द्र प्रताप सिंहदेव के नाम पर मनेन्द्रगढ़ कर दिया रेल्वे लाइन आने के कारण इस क्षेत्र का पर्याप्त विकास हुआ। सन् 1936 में मनेन्द्रगढ़ को तहसील मुख्यालय बना दिया गया।
"चिरमिरी" इस स्थान का नाम चिरमिरी क्यो पड़ा इसका कोई प्रमाण नहीं है फिर भी एक मत के अनुसार यहॉ चेरी माई की स्मृति में यहॉ एक सती मन्दिर है जो अब भग्नावस्था में है चेरी माई के कारण ही इस क्षेत्र का नाम चिरमिरी पड़ा होगा। जनकपुर का चांगबखार रियासत से संबंध होने के कारण रियासत का नामकरण चांगदेवी के नाम पर किया गया था यह रियासत की कुल देवी मानी गई है चूंकि इतिहासकार कनिंधम ने कोरिया रियासत मे स्थित रामगढ़ को चित्रकुट माना है।
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चांगबखार के मवई नदीं के तट पर एक गुफा है जिसे सीमामढ़ी हरचौका नाम से जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि श्री रामचन्द्र जी के वनवास काल का पहला पड़ाव यहीं पर था यहॉ पहुच कर उन्होने विश्राम किया। भरतपुर के पास सीता मढ़ी हरचौका (हरि का चौका) अर्थात् सीता की रसोई के नाम से प्रसिद्ध है, इसीकारण स्थानीय लोग इस स्थान को रामायण व महाभारत काल से जोड़ते हैै। संभवतः इस स्थान का नाम कालांतर में जनकपुर व भरतपुर हो गया।