क्या टूट जाएगा अजीत जोगी का सपना? क्या “कमल” में हो जाएगा “हल” का विलय?
रायपुर । छत्तीसगढ़ की राजनीति में 4 साल पहले 21 जून 2016 को अस्तित्व में आई पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय अजीत जोगी की जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे) का राजनीतिक सफर क्या खत्म होने वाला है? छत्तीसगढ़ की सियासत की कुर्सी पर खुद को देखने वाली पार्टी का सपना क्या सपना ही रह जाएगा?
विधानसभा चुनाव के बाद हर मोर्चे पर मिल रही पटखनी से क्या JCCJ के BJP में विलय की संभावना नजर आ रही है? राजनीतिक जानकारों का तो ऐसा ही कुछ मानना है.
विधानसभा चुनाव में जिस उम्मीद और आशाओं के साथ अजीत जोगी ने छत्तीसगढ़ की राजनीति में नया दांव खेला था, वह 7 विधानसभा सीटों में ही सिमट कर रह गया. जिसमें “हाथी” (BSP) भी जोगी की साथी रही.
स्वर्गीय अजीत जोगी के रहते लोगों का यही मानना था कि आने वाले समय में उनकी पार्टी बेहतर से बेहतर होती चली जाएगी, लेकिन उनके स्वर्गवास के बाद इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि जोगी का संगठन अब बेहद कमजोर पड़ गया है.
कहना गलत नहीं होगा कि अजीत जोगी के रहते पार्टी नेताओं में एक आस तो थी कि एक दिन जनता कांग्रेस सत्ता की चाबी जरूर हासिल करेगी. मगर अब जब वो नहीं हैं तो पार्टी यूं टूटने लगी है मानों नेता कार्यकर्ता ये सोच रहे कि अब जनता कांग्रेस में कुछ बचा ही नहीं.
अजीत जोगी के निधन के बाद JCCJ नेताओं और कार्यकर्ताओं के दल बदलने का जो सिलसिला चला वो अब भी कायम है और यह आगे कब तक जारी रहेगा, कुछ कहा नहीं जा सकता.
JCCJ नेताओं का घर वापसी अभियान
पुराने दिनों की ओर रूख किया जाए तो यह सिलसिला जनता कांग्रेस नेता योगेश तिवारी से शुरू हुआ था, जिन्होंने महासचिव के पद से अमित जोगी को इस्तीफा सौंपते हुए खुद को पद से मुक्त कर लिया. इसके बाद से जोगी परिवार के बेहद करीबी मानें जानें वाले कई पदाधिकारियों, नेताओं ने पार्टी का साथ छोड़ दिया.
एक के बाद पार्टी नेताओं के बीच चली घर (कांग्रेस) वापसी अभियान ने संगठन को सीमित कर दिया है. इतना सीमित कि अब शायद ही अमित जोगी खुद की सरकार बनते देख सकें.
मरवाही में JCCJ का भाजपा मोह
अजीत जोगी के निधन के बाद मरवाही उपचुनाव का शतरंज खुला. जिसमें तीन दिशाओं से प्रतियोगी पार्टी मैदान में चुनावी दांव पेंच के लिए तैयार थे, लेकिन क्षेत्र में जिनके एकतरफा जीत की अटकलें थी, वह मरवाही के रण में हाथ ही नहीं आजमा सकें.
स्व. जोगी की जाति पर लगे प्रश्नवाचक दाग के निशान अमित जोगी पर थे. मगर ये तो लाजमी था, आखिर पुत्र जो ठहरे. लेकिन ऐसी क्या मजबूरी रही होगी की अमित जोगी को अपनी जनता से ही भाजपा को वोट देने की अपील करनी पड़ गई.
मरवाही उपचुनाव में भाजपा को समर्थन का ऐलान कर अमित जोगी ने राजनीतिक विचारकों के बीच एक सवाल पेश कर दिया, “क्या जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे) का भारतीय जनता पार्टी में विलय हो जाएगा?” और “क्या छत्तीसगढ़ में आगामी विधानसभा चुनाव में ‘भारतीय जनता कांग्रेस'(BJC) मैदान में होगी?”
अमित की अपील बेकार, मरवाही में भी कांग्रेस सरकार
राजनीति में दिलचस्पी रखने वालों के गले एक बात नहीं उतरी कि मरवाही की जनता ने अमित जोगी की बात नहीं मानी? वही मरवाही विधानसभा जहां जोगी परिवार को हराना लोहे के चने चबाने के समान थी. खैर, कांग्रेस के केके ध्रुव ने लोहे के चने चबा ही लिए और मरवाही को उनके रूप में नया विधायक मिल गया. कहीं न कहीं जनता कांग्रेस के भाजपा को समर्थन देना कांग्रेस को ही फायदा दे गया.
विधायकी में JCCJ, मगर दिलों में कांग्रेस
एक के बाद एक टूटते जा रहे जनता कांग्रेस संगठन की एक टुकड़े में विधायक देवव्रत सिंह और प्रमोद शर्मा भी शामिल थे, जिन्होंने हाल ही में अमित जोगी पर ही कई संगीन आरोप लगाए. दोनों विधायक भले ही जनता कांग्रेस से हैं लेकिन उनके दिलों में भी कांग्रेस के लिए प्रेम है यह बात अब जगजाहिर है.
देवव्रत सिंह जहां कांग्रेस के कामों से प्रभावित था तो वहीं प्रमोद शर्मा अमित जोगी की कार्यप्रणाली से हताश. उन्होंने तो अमित जोगी को भस्मासुर की उपाधी दे दी. अमित जोगी को यह तक कह दिया कि वह पैसे लेकर भाजपा का समर्थन करते हैं और उनका मानसिक संतुलन खो गया है.
रेणू का हाथ, कांग्रेस के साथ?
मरवाही उपचुनाव परिणाम आने के पहले बागी हुए जेसीसीजे के दोनों विधायकों का गुस्सा जमकर फूटा, लेकिन विधायक देवव्रत सिंह ने एक बड़ी बात कही. उन्होंने दावा किया कि अजीत जोगी की धर्मपत्नि और अमित जोगी की मां रेणू जोगी भी कांग्रेस की विचारधारा के साथ हैं.
हालांकि इस बात पर रेणू जोगी ने साफ किया था कि वह कांग्रेस में नहीं जाएंगी. पार्टी के जिन दो विधायकों ने कांग्रेस को समर्थन दिया है, वो उनका कभी समर्थन नहीं करेंगी. उन्होंने कहा कि भय, लालच और सत्ता का सुख पाने के लिए कई लोग लगातार पार्टी छोड़कर कांग्रेस के साथ जा रहे हैं.